chemistry12th chapter-9 उपसहसंयोजक यौगिक (Coordination Compounds)

 उपसहसंयोजक यौगिक

द्विकलवण , संकुल या उपसहसंयोजक यौगिक , Ligand definition लिगेंड का वर्गीकरण

double salt Ligand definition and types संकुल या उपसहसंयोजक यौगिक , लिगेंड का वर्गीकरण

1.     द्विकलवण (double salt) :  वे योगात्मक योगिक जो ठोस अवस्था में क्वाथी होते हैं परंतु जलीय विलयन में पूर्ण रुप से आयनित हो जाते हैं उन्हें द्विक लवण कहते हैं इन्हें जालक लवण भी कहते हैं |

1.      कार्नेलाइट KCl.MgCl2.6H2O

2.     पोटाश एलम या फिटकरी  K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O

3.     मोर लवण या क्रिस्टलीय फेरस अमोनिया सल्फेट FeSO4.(NH4)2SO4.6H2O

मोर लवण जल में निम्न प्रकार से आयनित रहता है

FeSO4.(NH4)2SO4.6H2O → Fe2+ + 2NH4+ + 2SO42- + 6H2O

2.     संकुल यौगिक या उपसहसंयोजक यौगिक या संकुल लवण (Package compound or sub-injection compound or package salt):

वे योगात्मक योगिक जो ठोस तथा बिलियन दोनों अवस्थाओं में स्थाई होते हैं परंतु यह जल में पूर्ण रुप से आयनित नहीं होते हैं

जैसे : [Cu(NH3)4]SO4   = [Cu(NH3)4]2+  + SO42-

केंद्रीय धातु परमाणु तथा लिगेंड के मध्य बना उपसहसंयोजक बंध जिसमें लिगेंड दाता का तथा केंद्रीय धातु परमाणु ग्राही का काम करता है ,  इस प्रकार बनी संकुल को संकुल योगिक कहते हैं |

उपसहसंयोजन संता या समन्वय संता :

धातु लिगेंड को सम्मिलित रुप से उपसहसंयोजन सत्ता वह समन्वय संता कहते हैं |

केंद्रीय धातु परमाणु/ आयन (Central metal atom / ion):

वह परमाणु जो लीजेंड की निश्चित संख्या से जुड़कर विशेष ज्यामिति बनाता है उसे केंद्रीय तत्व परमाणु कहते हैं |

लिगेंड (Ligand) :

परमाणु या परमाणुओं का समूह है जिसमें कम से कम 1 लोन पेअर ऑफ़ इलेक्ट्रॉन्स होता है उसे लीजेंड कहते हैं ,  लीजेंड का वह परमाणु जो lone pair of electron त्यागता है उसे दाता प्रमाण कहते हैं |

 लिगेंड का वर्गीकरण :

लिगेंड में दाता परमाणुओं की संख्या के आधार पर इन्हें निम्न भागों में बांटा गया है

1.     एक दंतुर लिगेंड (A denture ligand):  इनमे एक दाता परमाणु होता है |

उदाहरण : :NH3 , H2O , R-NH2 , R2NH , R3N , Cl– , Br– , I , F– , OH– , CN– , NC–

2.       द्विदन्तुर  लिगेंड (Bilateral ligand) :

इनमें दो दाता परमाणु होते हैं

उदाहरण :  एथेन – 1, 2 – डाई एमीन  या en

एथिलीन डाई एमीन

3.       त्रि दंतुर लिगेंड (Three-legged ligand) :

इनमें तीन दाता परमाणु होते हैं

उदाहरण :  डाई एथिल ट्राई एमीन

4.     षट दन्तुर लिगेंड (Hexagonal ligand) :

इसमें छह दाता परमाणु होते हैं

उदाहरण :  एथिलीन डाई एमीन टेट्रा एसीटेट  या EDTA

उभय दंतुर लिगेंड (Amphibious ligand):

विवेक दंतुर लिगेंड जिनमें दो अलग-अलग दाता परमाणु होते हैं उन्हें उन्हें दंतुर लिगेंड कहते हैं |

उदाहरण : M ← CN

                M ← NC

कीलेट  लिगेंड ,समन्वय मंडल , उपसहसंयोजन संख्या , होमोलेप्टिक , हेट्रो लेप्टिक संकुल

कीलेट  लिगेंड (Kettle ligand):  

द्वि दंतुर या बहु दंतुर लिगेंड केंद्रीय धातु परमाणु से जुड़कर पांच या छह सदस्य वलय बनाते हैं ,  इस वलय  को कीलेट  लिगेंड कहते हैं तथा बने  योगिक को कीलेट योगिक कहते हैं |

कीलेट  लिगेंड निम्न है

en,  OX , EDTA4- , gly

उदाहरण : [Cu(en2)]2+

समन्वय मंडल (Coordinate board):

केंद्रीय धातु परमाणु तथा उससे जुड़े लिगेंड को गुरु कोष्ठक में लिखते हैं ,  इन सभी को सम्मिलित रुप से समन्वय मंडल कहते हैं |

जैसे : (1 ) K4[Fe(CN)6] मैं समन्वय मंडल [Fe(CN)6]  है |

(2) [Cr(NH3)6]Cl3 मैं समन्वय मंडल [Cr(NH3)6]3+

समन्वय बहुफलक (Coordinate multilayer):

केंद्रीय धातु तथा परमाणु तथा उससे जुड़े लिगेंड की द्विक स्थान व्यवस्था को समन्वय बहुफलक कहते हैं

जैसे : [Ni(CO)4] , (चतुष्फलकीय)

[Ni(CN)4]2- ,  ( समतलीय वर्गाकार)

[Fe(CN)6]-4   ( अष्ट फलकीय)

उपसहसंयोजन संख्या (Sub-connecting number):

केंद्रीय धातु परमाणु से जुड़े एक दंतुर लिगेंड की संख्या को उपसहसंयोजन संख्या कहते हैं |

नोट :  यदि केंद्रीय धातु परमाणु से द्वि दंतुर लिगेंड जुड़े हैं तो उनकी संख्या को 2 से गुणा कर उपसहसंयोजन संख्या ज्ञात करते हैं |

संकुल यौगिक

   उपसहसंयोजन संख्या

Na[Ag(CN)2]

2

[Cu(NH3)4]SO4

4

[Ni(CO)4]

4

[Cr(NH3)3Cl3]

6

[Cr(en)3]Cl2

6

Na3[Al(OX)3]

6

[CrCl2(en)2]

6

[Ni(EDTA)]

6

 

होमोलेप्टिक संकुल (Homomolectic package):

वह संकुल यौगिक जिनमें लिगेंड के सभी दाता परमाणु समान होते हैं उन्हें होमोलेप्टिक  संकुलन कहते हैं |

उदाहरण : 1. [Ni(CO)4]

2.     [Cu(NH3)4]SO4

हेट्रो लेप्टिक संकुल (Hetero lactic package):

वह संकुल योगिक जिनमे लिगेंड के दाता परमाणु अलग-अलग होते हैं |

उदाहरण : [Pt(NH3)2Cl2]

उपसहसंयोजक यौगिकों का नामकरण Naming Sub-coordinator compounds

Naming Sub-coordinator compounds उपसहसंयोजक यौगिकों का नामकरण :

उपसहसंयोजक यौगिकों का IUPAC नाम देने के लिए निम्न नियम काम में आते हैं |

1.     आईयूपीएसी नाम लिखते समय धनायन को पहले तथा ऋण आयन को बाद में लिखा जाता है |

2.     नाम ने लिखते समय धनायन तथा ऋण आयन की संख्या का उल्लेख नहीं करते |

3.     संकुल यौगिक का नाम लिखते समय लिगेंड को अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में लिखा जाता है ,  इसके बाद केंद्रीय धातु का नाम लिखा जाता है ,  तथा इसके बाद धातु की ऑक्सीकरण अवस्था को रोमन संख्या में कोष्ठक के अंदर बंद करके लिखा जाता है |

लिगेंड का नाम निम्न प्रकार से दिया जाता है

 

S.No

लिगेंड

नाम

 आवेश

1.        

NH3

Ammine  

0

2.        

H2O

Aqua

0

3.        

CO

Carbonyl

0

4.        

NO

Nitrosy

0

5.        

H2N-CH2-CH2-NH2

एथेन-1,2- डाई एमीन

0

6.        

PH3

 फास्फीन

0

7.        

PPH3 or (C6H5)3P

 ट्राई  फेनिल फास्फीन

0

8.        

-CH3-NH2

 मेथिल एमीन

0

9.        

Cl–

Chloride

-1

10.    

Br–

Bromido

-1

11.    

I–

Iodido

-1

12.    

F–

Fluorido

-1

13.    

OH–

hydroxo

-1

14.    

NO2–

Nitrito-N

-1

15.    

–ONO

Nitrito-O

-1

16.    

–CN

cyano

-1

17.    

–NC

Isocyano

-1

18.    

–SCN

  थायो सायनेटो

-1

19.    

–NCS

आइसो थायो सायनेटो

-1

20.    

O2-

Oxo

-2

21.    

CO32-

carbonato

-2

22.    

SO42-

sulphato

-2

23.    

SO32-

sulphito

-2

24.    

S2-

sulphido

-2

25.    

C2O42-

oxalata

-2

26.    

S2O32-

thiosulphato

-2

27.    

C2H5–

साइक्लो पेंटाडाइनिल

-1

28.    

C2H5N or Py

pyridinl

0

29.    

NH2–

अमलीडो

-1

30.    

NO+

ऐमीडो

+1

31.    

NH2NH3

नाइट्रो सीलियम

+1

32.    

H–

हाइड्रिडो

-1

§  वे लिगेंड जिनकी संख्या 2,3,4,5 ,6होती है उनके नाम से पूर्व क्रमशः  डाई ,ट्राई ,टेट्रा , पेंटा , हेक्सा लिखा जाता है |

§  जिन लिगेंडो के नाम में डाई ,ट्राई ,टेट्रा  शब्द आते है यदि ऐसे लिगेंडो की संख्या 2,3,4 है तो उनके नाम से पूर्व क्रमशः बिस ,ट्रिस ,टेट्रा किस लिखा जाता है |     

केवल ऋणावेशित संकुल आयन में धातु के अंत में ऐट (ate) लगाते है |

उदाहरण : K3[Fe(CN)6]  पोटेशियम हेक्सा साइनो फेरेट (III)

संकुल यौगिकों का सूत्र लिखना Write a formula for package compounds

Write a formula for package compounds संकुल यौगिकों का सूत्र लिखना :

संकुल यौगिक का सूत्र लिखते समय निम्न पद काम में आते है

1.     संकुल यौगिक में सबसे पहले धनायन ऋणायन की पहचान करते है।

2.     सरल धनायन अथवा सरल ऋणायन का सूत्र आवेश सहित लिखते है।

3.     संकुल आयन का सूत्र बड़े कोष्ठक के अंदर लिखते है , इसमें धातु सबसे पहले तथा बाद में लिगेंड को लिखा जाता है , धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था तथा लिगेंड पर आवेश की सहायता से संकुल आयन पर आवेश ज्ञात कर लेते है।

4.     सरल आयन संकुल आयन की सहायता से संकुल यौगिक का सूत्र लिख देते है।

उदाहरण (Examples) :

(1) पोटेशियम हेक्सा सायनोफेरेट (II) Potassium Hexa Cyeno Ferret (II)

हल : K+  [Fe(CN)6]x

+2 -6 = x

-4 = x

K+1  [Fe(CN)6]4-

K4[Fe(CN)6]

(2) हेक्साऐमिन क्रोमियम(III) क्लोराइड Hexa amin chromium (II) chloride

हल : [Cr(NH3)6]x  Cl-1

+3 +6(0) = x

+3 = x

[Cr(NH3)6]3+  Cl-1

[Cr(NH3)6]Cl3

समावयवता की परिभाषा क्या है , प्रकार , वर्गीकरण

समावयवता : वे यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते है परन्तु उसमे उपस्थित समूहों की व्यवस्था भिन्न भिन्न होती है , जिससे उनके गुण भी भिन्न भिन्न होते है।  वे एक दूसरे के समावयवी कहलाते है इस गुण को समावयवता कहते है।

समावयवता का वर्गीकरण :

समावयवता

§  सरंचना समावयवता

§  त्रिविम समावयवता

सरंचना समावयवता

§  आयनन

§  बंधनी

§  उपसहसंयोजन

§  विलायक योजन या हाइड्रेट

त्रिविम समावयवता

§  ज्यामिति

§  घूर्णन या प्रकाशिकी

1.     संरचना समावयवता :

यह चार प्रकार की होती है

(1) आयनन समावयवता :

वे संकुल यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते है परन्तु जलीय विलयन में अलग अलग आयन देते है उनमे आयनन समावयवता पाई जाती है।

उदाहरण :

[CO(NH3)5Cl]SO4   [CO(NH3)5Cl]2+  + SO42-

[CO(NH3)5SO4]Cl    [CO(NH3)5SO4]+  + Cl

प्रथम यौगिक के जलीय विलयन में BaCl2का विलयन मिलाने पर BaSO4 का स्वेत अवक्षेप बनता है , जिससे विलयन में सल्फेट (SO4) आयन की पुष्टि होती है।

दूसरे यौगिक के जलीय विलयन में AgNO3 मिलाने पर AgCl का स्वेत अवक्षेप बनता है , जिससे क्लोराइड (Cl) आयन की उपस्थिति सिद्ध होती है।

(2) बंधनी समावयवता :

वे यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते है परन्तु उनमे उभयदंती लिगेंड के दाता परमाणु भिन्न भिन्न होते है , उनमे बंधनी समायवता पायी जाती है।

उदाहरण :

[CO(NH3)5(NO2)]Cl2

[CO(NH3)5(ONO)]Cl2

(3) उपसहसंयोजन समायवता :

यह समायवता उन संकुल यौगिकों में पायी जाती है जिनका धनायन ऋणायन दोनों ही संकुल आयन हो इन संकुल आयनों में लिगेंड के आदान प्रदान से यह समायवता बनती है।

उदाहरण :

[CO(NH3)6][Cr(CN)6]

[Cr(NH3)6][CO(CN)6]

(4) विलायक योजन समायवता या हाइड्रेट समायवता :

वे संकुल यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते है परन्तु एक समावयवी में जल के अणु लिगेंड के रूप में तो दूसरे समावयवी में कुछ जल के अणु क्रिस्टलीन जल में होते है।

(2) त्रिविम समायवता :

 वे यौगिक जिनके अणुसूत्र समान होते है परन्तु उनमे परमाणु अथवा समूहों की आकाशीय व्यवस्था भिन्न भिन्न होती है वे एक दूसरे के त्रिविम समावयवी कहलाते है , इस गुण को त्रिविम समावयवता कहते है।

यह समावयवता दो प्रकार की होती है।

(1) ज्यामिति समावयवता

(2) प्रकाशिक समावयवता

(1) ज्यामिति समावयवता :

उपसहसंयोजन संख्या चार वाले संकुल यौगिक जिनकी ज्यामिति सतलीय वर्गाकार है उनमे ज्यामिति समायवता।

उदाहरण :

[Pt(NH3)2Cl]

[Pt(NH3)2ClBr]

(2) प्रकाशिक समावयवता या ध्रुवण समावयवता :

वे यौगिक जो समतल ध्रुवित प्रकाश के तल को किसी विशेष दिशा में घुमा देते है उन्हें ध्रुवण घूर्णक यौगिक कहते है।

यदि वह यौगिक समतल ध्रुवित प्रकाश के तल को दायीं ओर घुमाता है तो उसे दक्षिण ध्रुवण घूर्णक पदार्थ कहते है इसे d या + से व्यक्त करते है।

यदि वह पदार्थ समतल ध्रुवित प्रकाश के तल को बायीं ओर घुमाता है तो उसे वाम ध्रुवण घूर्णक पदार्थ कहते है इसे l याचिन्ह से व्यक्त करते है।

ध्रुवण समायवता के लिए आवश्यक शर्ते निम्न है।

1.     अणुअसममित होना चाहिए।

2.     अणु अपने दर्पण प्रतिबिम्ब पर अध्यारोपित नहीं होना चाहिए ऐसे अणुओं काइरल अणु कहते है।

उदाहरण : [CO(CN)3]3+

वेर्नेर सिद्धांत , संयोजकता बंध सिद्धांत (Connective bond theory) , (werner theory)

(Connective bond theory) (werner theory) वेर्नेर सिद्धांत संयोजकता बंध सिद्धांत उपसहसंयोजक यौगिकों में बंधन :उपसहसंयोजक यौगिकों में बंध की प्रकृति वह गुणों की व्याख्या करने के लिए निम्न सिद्धांत दिए गए |

1.      वेर्नेर सिद्धांत (werner theory): इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है

§  उपसहसंयोजक यौगिकों में केंद्रीय धातु परमाणु की दो प्रकार की संयोजकता होती है ,  प्राथमिक संयोजकता तथा द्वितीयक संयोजकता

§  प्राथमिक संयोजकता आयनिक होती है जबकि द्वितीयक संयोजकता अन आयनिक होती है

§  प्राथमिक संयोजकता ऋण आयन द्वारा संतुष्ट होती है जबकि द्वितीय संयोजकता उदासीन अणु तथा ऋण आयन द्वारा संतुष्ट होती है

§  प्रत्येक धातु परमाणु की द्वितीयक संयोजक निश्चित होती है इसे धातु की उप सह संयोजकता भी कहते हैं

§  प्राथमिक संयोजकता से जुड़े परमाणु को डॉटेड लाइन (-  – – – –) से व्यक्त करते हैं जबकि द्वितीय संयोजकता से जुड़े समूह को फुल लाइन से व्यक्त करते हैं

§  धातु की द्वितीयक संयोजकता से जुड़े समूह एक विशेष  ज्यामिति का निर्माण करते हैं

2.     संयोजकता बंध सिद्धांत (Connective bond theory) :

इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है

§  सर्व प्रथम केंद्रीय धातु परमाणु अपने ऑक्सीकरण अवस्था की बराबर संख्या में इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाता है

§  केंद्रीय धातु परमाणु अपनी उपसहसंयोजन संख्या के बराबर संख्या में लिगेंड के लिए खाली कक्षक उपलब्ध कराता है

§  खाली कक्षक आपस में मिलकर खाली संकर कक्षक बनाते हैं जिनमें लिगेंड अपने लोन पेअर ऑफ़ इलेक्ट्रॉन्स देते हैं

§  अष्ठफलकीय ज्यामिति  मैं जब अंदर के d कक्षक संकरण में भाग लेते हैं तो d2sp3 संकरण होता है ,  तो बने संकुल को आंतरिक कक्षक संकुल या निम्न कक्षक संकुल या चक्रण युग्मित संकुल कहते हैं ,  जब संकरण मे बाह्य d कक्षक भाग लेते हैं तो sp3d2  संकरण होता है जिस से बने संकुल को बाह्य कक्षक संकुल या उच्च चक्रण संकुल या चक्रण मुक्त संकुल कहते हैं

§  यदि सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित है तो प्रतिचुंबकीय परंतु अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने पर अनुचुंबकीय संकुल कहते हैं

§  चुंबकीय आघूर्ण का मान निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करते हैं

n = अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या

Valence bond theory (VBT) की कमियां drawbacks in hindi

VBT (Valence bond theory) की कमियां :

1.     यह सिद्धांत पूर्व अनुमानों पर आधारित है

2.     इस सिद्धांत में धातु आयन की प्रकृति पर अधिक ध्यान दिया जाता है जब की  लिगेंड की प्रकृति पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता

3.     यह संकुल यौगिकों के रंग तथा स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं करता

4.     यह सिद्धांत संकुल यौगिकों के उष्मागतिकी स्थायित्व के बारे में नहीं बताता

5.     उपसहसंयोजन संख्या 4 वाले योगीको की ज्यामिति को स्पष्ट नहीं किया जा सकता

6.     प्रबल क्षेत्र लिगेंड तथा दुर्बल क्षेत्र लिगेंड के बारे में नहीं बताया गया

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत (Crystal field theory)(CFT)

इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है

§  इस सिद्धांत में धातु को आयन तथा लिगेंड को बिंदु आवेश माना गया है

§  धातू लिगेंड के मध्य वैद्युत समांगी या आयनिक बंध होता है

§  विलगित धातु आयन में पांच d  कक्षक dxy , dyz , dzx, dx2-y2, dz2 समान उर्जा के होते हैं इन्हें संभ्रंश कक्षक कहते हैं, इनमें से dxy , dyz , dzx  की पालियों  अक्ष के मध्य होते हैं इन्हें t2g कक्षक कहते हैं ,  जबकि की dx2-y2, dz2 पालिया अक्ष पर होती हैं इन्हें egकक्षक कहते हैं | , लिगेंड के पास में आने से पांच d कक्षक की  समभ्रंशता समाप्त हो जाती है अर्थार्थ d कक्षक दो भागों में विभक्त हो जाते हैं इसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहते हैं ,  क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (Crystal field spilit) तथा उसके प्रभाव के अध्ययन को CFT कहते हैं |

अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (Crystal area lamination in octetal package compounds):

केंद्रीय धातु परमाणु में समान ऊर्जा के पांच d कक्षको को समभ्रंश  कक्षक कहते हैं ,  लिगेंड के पास में आने से यह दो भागों में विभक्त हो जाते हैं इसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहते हैं ,  5 d  कक्षको में से 3 कक्षको की ऊर्जा कम हो जाती है अर्थार्थ t2g  कक्षको की ऊर्जा कम हो जाती है जबकि दो eg d कक्षको की ऊर्जा अधिक हो जाती है |

t2g   eg  कक्षको के मध्य ऊर्जा के अंतर को क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा Crystal area spilit energy (CFSE) कहते हैं , पानी निम्न कारक पर निर्भर करता है

1.     धातु आयन की प्रकृति

2.     संकुल यौगिक की ज्यामिति

3.     लिगेंड की प्रकृति

4.     धातु आयन पर आवेश

स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणी spectral chemical series in hindi

spectral chemical series in hindi स्पेक्ट्रमी रासायनिक श्रेणीलिगेंड को क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा अर्थार्थ ▲0 के बढ़ते क्रम में रखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है उसे स्पेक्ट्रमी रासायनिक  श्रेणी कहते हैं |

I < Br– < SCN– < Cl– < S2- < F– < OH– < C2O42- < H2O < –NCS  < EDTA4- < NH3 <en < NO3– < CN– <CO

नोट :  वे लिगेंड जिनके लिए ▲0 का मान अधिक होता है उन्हें प्रबल क्षेत्र लिगेंड कहते हैं जैसे CO , Ca– , NO2–

नोट : वह लिगेंड जिनके लिए CFSE  का मान कम होता है उन्हें दुर्बल क्षेत्र लिगेंड कहते हैं |

प्रबल क्षेत्र संकुल दुर्बल क्षेत्र संकुल का बनना (Building of Strong Area Packages and Weaker Areas Packages):

इन संकुल का बन्ना बनना दो कारको पर निर्भर करता है

1.     क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा अर्थार्थ ▲0

2.     युग्मन ऊर्जा –  इलेक्ट्रॉन को युग्मित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को युग्मन ऊर्जा कहते हैं इसे p से व्यक्त करते हैं

नोट :  यदि CFSE का मान युग्मन ऊर्जा से अधिक है अर्थार्थ ▲0 > p है तो स्ट्रांग फील्ड कांपलेक्स बनता है इसे निम्न चक्रण संकुल भी कहते हैं

नोट :  यदि ▲0 < p है तो व्हिटफिल्ड कांपलेक्स बनता है इसे उच्चारण संकुल भी कहते हैं

चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों में d  कक्षको का विपाटन (Lamination of cell chamber in quaternary package compounds):

1.     चतुष्फलकीय संकुल योगीको मैं d कक्षको का विपाटन अष्टफलकीय संकुल योगिको की तुलना में विपरीत होता है अर्थार्थ eg कक्षको की उर्जा कम t2g कक्षको कि उर्जा अधिक होती है |

2.     eg  t2g कक्षको के मध्य ऊर्जा को क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहते हैं इसे  से व्यक्त करते हैं

3.     चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों के लिए ▲t का मान कम होता है

4.     चतुष्फलकीय संकुल यौगिक सदैव उच्च चक्रण संकुल निर्माण करते हैं क्योंकि ▲t का मान युग्मन ऊर्जा से कम होता है |

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत की कमियां The drawbacks of crystal field theory (CFT) :

1.     धातू लिगेंड के मध्य सहसंयोजक बंध होता है इस तथ्य को नहीं बताया गया

2.     इस सिद्धांत में लिगेंड को बिंदु आवेश माना गया है अतः ऋण आवेशित लिगेंड के द्वारा d कक्षको में विपाटन अधिक होना चाहिए परंतु F– , Cl– , Br– , I– आदि दुर्बल क्षेत्र लिगेंड है

धातु कार्बोनिल यौगिकों में बंधन Bonding between metal carbonyl compounds

Carbonyl compounds कार्बोनिल यौगिक :

धातु कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की क्रिया से बने ऑक्साइड को कार्बोनिल यौगिक कहते है।  संक्रमण धातुएँ इस प्रकार के यौगिक बनाती है।

उदाहरण : [Ni(CO4)] टेट्रा कार्बोनिल निकैलेट (0)

धातु कार्बोनिल यौगिकों में बंधन (Bonding between metal carbonyl compounds):

धातु कार्बोनिल यौगिकों में अभिक्रिया शीलता बंधन अन्योन्य क्रिया

1. लिगेंड के भरे हुए शंकर कक्षक धातु के खाली शंकर कक्षकों से अतिव्यापन कर सिग्मा (σ) बंध बनाते है।

2. (σ) बंध बनने पर इलेक्ट्रॉन लिगेंड से धातु की ओर जाते है जिससे धातु पर इलेक्ट्रॉन का घनत्व बढ़ जाता है।

3. धातु पर इलेक्ट्रॉन के घनत्व को कम करने के लिए पश्च बंध बनता है इसमें धातु के भरे हुए d कक्षक लिगेंड के खाली कक्षकों से अतिव्यापन कर पाई (π) बंध निर्माण करते है।

4. (π) बंध बनने पर इलेक्ट्रॉन धातु से लिगेंड की ओर जाते है।

5. (σ) (π) बंध एक दूसरे की सामर्थ बढ़ाते है इसे क्रियाशीलता प्रभाव कहते है।

उपसहसंयोजक यौगिकों के गुण तथा उपयोग , स्थायित्व Properties and Uses

Properties and Use of Sub-Covalent Compounds उपसहसंयोजक यौगिकों के गुण तथा उपयोग :

1.     औषधि के रूप में (As medicine) :

1.     सिस –  प्लेटिनम का उपयोग ट्यूमर के निदान में किया जाता है

2.     शरीर में कॉपर की अधिकता को कम करने के लिए d- पेनिसिल एमीन से क्रिया की जाती है

3.     लेड ( शीशा) के विषैले पन को दूर करने के लिए EDTA काम में लिया जाता है

4.     शरीर में आयरन की अधिकता को कम करने के लिए डेसफेरीऑक्सिम -B काम में लिया जाता है

(b)  जैव प्रणाली में (In bio system):

1.     पेड़ पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल Mg2+आयन का संकुल यौगिक है जो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सहायक है

2.     रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन Fe2+आयन का संकुल यौगिक है जो शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति करता है

3.     विटामिन B-12 में सायनो कोबालेमिनपाया जाता है जो Ca2+आयन का संकुल यौगिक है यह प्रति प्रणाली अरक्तता कारक है

(c) उद्योगों में (In the industries):

1.     विलकिंसन उत्प्रेरक का IUPAC नाम क्लोरीडो ट्रिस -(टाई फेनिल फास्फीन ) रोहड़ियम (I) यह एल्कीन का  हाइड्रोजनीकरण करता है

2.     धातुओं की सतह पर Ag अथवा Au की परत चढ़ाने के लिए निम्न संकुल आयन काम में लेते हैं [Ag(CN)2]–  , [Au(CN)2]–

3.     फोटोग्राफी में फिल्म ( नेगेटिव) पर AgBr के लगे रहते हैं इस फिल्म को हाइपो के विलियन में डुबो देते हैं जिससे AgBr के कण हट जाते हैं

4.     धातु निष्कर्षण में अशुद्ध निकल का शोधन  मांड विधि से करते हैं

5.     Ag  या Au का निष्कर्षण निक्षालन विधि से किया जाता है

(d)  गुणात्मक विश्लेषण में (In qualitative analysis):

1.     Ni2+ आयन डाई मेथिल    गलाई  ऑक्सीन (DMG) से क्रिया करके संकुल यौगिक का निर्माण करते हैं जिससे Ni2+ आयन की पहचान की जाती है

2.     कठोर जल में उपस्थित Cl2+आयन  वह मैग्नीशियम आयन की पहचान EDTA द्वारा की जाती है

उपसहसंयोजक यौगिकों का स्थायित्व (Stability of Sub-connector compounds):

धातू लिगेंड के मध्य जितना प्रबल बंद बनता है उपसहसंयोजक यौगिक का स्थायित्व उतना ही अधिक होता है इनके स्थायित्व को स्थायित्व स्थिरांक द्वारा व्यक्त करते हैं

यह दो प्रकार का होता है

1.     पदश: स्थायित्व स्थिरांक

2.     समग्र स्थायित्व स्थिरांक

 

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